उफ़ यह कोविड…!!

उफ़ यह कोविड…!!

होली भी बीती बड़े हर्षोल्लास के साथ, पर क्या पता था की हमारी शांत मशीनी-ज़िंदगियो मे कोई बड़ा सैलाब दबे पांव उथल-पुथल मचाने की फ़िराक़ मे ‘चार-चौबन्द’ कमर कस रहा है | वह अमली-जामा पहने हुए कहीं हमारे ही बीच छिपा बैठा था | कहीं किसी ना किसी के अंदर, किसी को अपना शिकार बनाने के इंतज़ार मे | पर हम निश्चिंत निस्फिकर, उसको अपनी जड़े मजबूत करने एवं एक-एक करके अपने शिकार को मौत का ग्रास बनाने दिया, कारण हमे इस छिपे हुए दुश्मन का आंशिक मार्त्र भी ज्ञान नहीं था, की यह क्रूरता की किस देहलीज को पार कर सकता है और ना इस बात का की इसकी अमिट भूख है, उस भूख को शांत करने के लिए ना जाने उसको कितनी नर-बलियों का इंतज़ार था |

वह रोजमर्रा की ज़िन्दगी, गरम चाय की चुस्की से नींद भगाने की भरपूर कोशिश, नाक पर चश्मा टिकाते हुए अलसाय हाथों से अख़बार पलटना, ग्वाले की साइकिल की घंटी का इंतज़ार, वह बीबीसी रेडियो (काम वाली बाई) का आकर डोर-बेल बजाने का बेसब्री से उतावला होकर इंतज़ार करना, वह पड़ोसी भाभियों के साथ ‘ISRO’ से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण विषयो पर अपनी राय देना की भिंडी मे नमक कितना डाला या दाल मे कितना पानी, कौन से पार्लर जायें अपने चेहरो का रहा-साहा भूगोल भी बिगाड़ने, वह किटी-पार्टी की गरमा-गरम गपशप, अपने झूठी ऐश्वर्या का ढोल पिट-पिट कर आकर्षित करना, सब इस कदर एक क्षण मात्र मे पूर्ण-विराम मे परिवर्तित हो जायेगा, कभी अपने बुरे से बुरे सपने मे भी ना सोचा ना समझा? पर इस ‘ऐतिहासिक घटना’ के हम साक्षी रहे |

बड़े-बड़े युद्ध हुए, बहुत भूखमरी देखी, खरतरनक से खरतरनक जानलेवा बीमारी भी इतने गत वर्षो मे इंसानियत ने झेला, पर ऐसा कुछ तो सपने मे भी अकल्पनीय है | पहले तो हम सब ने इसको हलके मजाक मे लिया एवं इसके भयानक रूप को कम आंका, वह हमारी बहुत बड़ी भूल थी | ‘जनता कर्फ्यू’ को भी मनाया गया, ‘पहला लॉकडाउन’ भी अंबुबन एक लम्बी गर्मी की छुट्टी साबित हुई, परिवार के साथ कम-ज्यादा स्वागत कांशी था | जिंदगी एक कमरा-बंद होकर रह गयी थी, सिर्फ पशु-पक्षियों की तरह खाना या खाने की सामग्री जुटाना ही एक मात्र सर्वप्रथम एवं सर्वश्रेस्ठ काम था, सिर्फ ‘हम और हमारा’ परिवार, प्यार-महोबत की तो मानो नदिया बह रही थी, पर क्या करते कोई चारा भी नहीं था | बहुत जोरदार तरीके से फेसबुक, व्हाट्सप्प एवं इंस्टाग्राम मे हर वक़्त की खबर लोग अपडेट करने मे लगे थे | क्या पकाया, क्या खाया, क्या पहना, इत्यादि |

बड़े-बड़े नामचीन व्यवसाई, छोटे-छोटे फूटकर विक्रेता, बड़े सितारे-छोटे सितारे, बड़ा नेता छोटा पार्षद, सारे पप्पू-चुनू, बिटू-राजा, सीता-गीता सब एक ही पायदान पर खड़े थे ओर वह था सब का ‘घोंसला’ दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह | कहाँ की दौलत, कहाँ की शानोशौकत? सब बस बंद होकर रह गए अपने ‘कोकून’ मे मानो हम भी भालुओं की तरह सीतनिद्रा या पुष्पदलविन्यास मे गए हो | बड़ा नाम, पैसा, रुतबा, कुछ भी उस सूक्ष्मजीवी शैतान को ना रोक पाया | कल तक जो मानव जाती को घमंड था सबसे ज्यादा ताकतवर होने का वह यू ही कुछ पलों मे ढेर हो गया और वहां मौत का आर्तनाद चलता रहा | बड़े विकसित देश एवं ‘NASA’ जहां चाँद, मंगल मे जीवन की ख़ोज करने मे लगे हुए है, पर पृथ्वी मे सर्वनाश का तांडव रोक पाना उनके पहुंच के बाहर थी | सब निढाल होकर रह गए! कहा गया वह शक्ति का प्रदर्शन? बड़े-बड़े अस्त्र-सस्त्र उस नन्ही सी जान का कुछ भी ना बिगाड़ पाए |

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