उफ़ यह कोविड…!! [PART-3]

जो जीवत थे उनकी मुसीबत भी अलग पहले संस्थानों का अचानक रातों रात बंद हो जाना, शिक्षण संस्थानों का लम्बा अवकाश, बस ‘स्मार्ट फोन’ ही दुनिया से जुड़ने का एक मात्र ज़रिए रह गया था | कुछ दिनों तक तो यह सब बहुत लुभावना लगा पर फिर ‘हताशा’ एक नया महमान बन कर लोंगो के दिलों-दिमाग पर घर करने लगा, जिस का नतीजा ‘आत्माहत्या’ के रूप में सामनें आया। शत-शत प्रणाम उन रक्षकों को जो बेखौफ होकर मानव जाती के साथ डटे रहे। सारी पृथ्वी ‘कोविड’ नामक दैत्य की मृत्यु रुपी तांडव लीला से भयकंपित होकर थर्रा रही थी बस सब की ज़ुबान पर एक ही श्लोक था, ”मास्क पहनो, भाइयों-बहनों और जीवन बचाओ” । दिन ‘प्रक्षालक’ से शुरू होकर ‘प्रक्षालक’ पर ही खत्म होता। पर क्या इस महामारी के पीछे हमारा हाथ ही तो नहीं है?

हमें अपने अंतरआत्मा को झक-झोर कर टटोलना होगा एव इस प्रश्न का उत्तर हम से बहेतर कोई ना दे सकेगा कि क्या हम प्रकृति के साथ न्याय कर रहै है?, क्या हमारी जीवन शैली सुगठित एव ‘अनुशासन प्रिय’ है?, क्या हमारा आहार-विहार अप्राकृतिक नहीं है? आलस की बेड़ियों से खुद को आज़ाद करके खुली हवा में योगाभ्यास करना हमारे जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए | सारे खेल, कसरत, योगाभ्यास, समस्त क्रियाकलाप, हँसना- हँसाना, रोना-रुलाना, दोस्ती-यारी, सगे- सम्बन्धी मात्र फेसबुक या व्हाट्सप्प तक सीमित होकर ना रह जाएं | इन सब अनुभूतिओं को असल ज़िन्दगी में अनुभव करना अति अनिवार्य है।

खुली हवा में, नीले गगन के नीचे टहलना, ‘योग’ करना, प्रकृति के माध्यम से ईश्वर प्रभु को नज़दीक से देखना एवं पाना, प्रकृति के अमूल्य सम्पदों का लुत्फ़ उठाना हमें आत्मिक शांति एव सुदृढ़ता प्रदान करेगा। फूल, पत्ते, मिट्टी, पत्थर, पानी, वायु, चाँद, सूरज, तारे, वर्षा, बादल, नदियाँ, झरने, पहाड़, पर्वत, सूर्योदय, सूर्यास्त, इत्यादि, यह सब प्राकृतिक नियामतें आपसे कुछ कहना चाहती है इनको सुनने का हम सबमे धीरज होना चाहिए | इनसे हमे प्रचुर मात्रा मे मनोबल एवं मानसिक दृढ़ता हासिल होगी | खान-पान का भी विशेष ध्यान रखना होगा, संतुलित खान-पान एक संतुलित जीवन का सीधा सुगम रास्ता है | इन सब हिदायतों से ही हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता का अनंत बार इजाफा होगा और यही हमारा अभेद सुरक्षा कवच बन कर ‘कोविड’ तो क्या किसी भी महामारी से हमारी रक्षा करेगा | हमे हर पल, हर साँस का मूल्य समझना होगा एवं प्रकृति के सुर मे सुर मिलाकर चलने मे ही हमारी भलाई है | यही हमारे जीवन का अमर-मंत्र होगा अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी एवं हम किसी भी महामारी के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाएंगे |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *