स्वच्छता और हम [Part-2]

स्वच्छता शब्द के अंतर्गत कुछ और विशेष गुण पर भी हमें ध्यान आकर्षित करना अतिलाभप्रद होगा और वह है, साथ ही स्वच्छ शारीर , दिमाग , मन एवं आत्मा की स्वच्छता की भी आवश्यकता है , जो हमारी प्रतेक सोच में हर कार्यो में दिखाई देगी, कहने का तात्पर्य यह है जब हमारी सोच स्वच्छ एवं सुगाठित होगी मात्र उपरी दिखावा ना रह कर सही अर्थ मे कार्य कलापों मे झलके | जिससे हमारा और हमारे समाज का सुगडित एवं दृढ गठन होगा अन्यथा हमारा हर कदम विफल होता नज़र आएगा | वातावरण मे भी स्वछता अति आवश्यक है, हमारा स्वच्छ वातावरण और हवा की शुद्धता एवं स्वच्छता हमें अन्दर तक प्रेरित करने में सहयक होगा इस संदर्भ में कोई दो राह नहीं है जिस हवा को हम साँस के रूप में अन्दर लेते है वही स्वच्छ न हो तो मानव जीवन अनेको रोगों की जकड़ में आ जायेगा, वायु की तरह नदी के पानी की स्वच्छता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जो करोड़ो लोगो की जीवन दायनी है चाहे पीने का जल हो या खेतो के सिचाई का पानी स्वच्छता रखना बहुत जरुरी है |

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सफाई के बहुआयाम जो कि प्रयोग मे लाना भी अनिवार्य है

हमारी वसुंधरा को एक स्वच्छ माहोल प्रदान करना हमारा कर्तव्य है , जिसने हमें अपने ह्रदय से सिंच कर इस जीवन में खड़ा होना सिखाया क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है की जिसने हमारे लालन – पालन में कोई कसर नहीं छोड़ी ? अत: स्वच्छता की परिभाषा मात्र दिवाली की रंग रोगन एवं साफसफाई तक ही सिमित रह कर या आंगन का झाड़ू या कूड़ा- कड़कट तक न सिमित रहकर एक अभिन्न जीवन शैली बन जाना चाहिए! स्वच्छ भारत मिशन तभी बनाना सम्भव हो पाएगा जब स्वच्छ मनुष्य की कड़ी ही एक स्वच्छ समाज का गठन करने में मील का पत्थर साबित होती है , अतः हम सबको गहन आत्मचिंतन कर प्रण लेना चाहिए की समय की मांग और जरुरत को देखते हुए “स्वच्छ सोच को अपनाए क्योकि एक स्वच्छ सोच और विचार ही स्वच्छ कार्य की जननी है |” और हम सव्रप्रथम अतिआवशयक तौर पे अपने अंदर शुद्ध स्वच्छता का बीज रोपें, उसे अंकुरित होने दे, अपने स्वच्छ सोच रूपी जल एवं अन्य पौष्टीक धाराएँ प्रदान कर एक फलता फूलता वृक्ष बनाए एवं देश को एक सुद्रढ़ पथ पर चलने के लिए अग्रसर करे एवं आने वाली पीढ़ी को असीम स्वच्छ वातावरण प्रदान करने का प्रयास करे |

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