‘कोरोना कोरोना’ अब बस करोना !!
कोरोना कोरोना अब बस करोना,
मानव जाती को अब बस छोड़ दो ना |
बहुत ‘सताया’, बहुत ‘रुलाया’,
अब बस खुल के हॅसने दो ना |
खुली हवा मे, खुले बताश मे,
अब खुल के साँस लेने दो ना |
बहुत हुआ अब मास्क का झमेला ,
पी.पी.इ किट मे दिखे हर मनुषय अलबेला |
देख कर हमे लगे यह चाँद है या धरती का सीना ?
सैनिटाइजर, साबुन से हाथ धो-धोकर हुए हम पागल ,
अब बस करो, मत करो इस कदर पागल |
कभी लॉकडाउन 1.0 तो कभी लॉकडाउन 2.0 ,
क्या अनोखी है तुम्हारी यह कोविड तांडवलीला |
कभी बंद है बसें, तो कभी बंद है रेल ,
पता नहीं कहाँ खो गई गर्मियों की छुटियो की रेलमपेल |
वह आम के बगीचों मे खिलौनों से खेलना ,
खट्टे मीठे रसीले आम चूसना,
लाल-लाल अठखेली करती लीचियों,
रंग बिरंगी आइसक्रीम, गन्ने के रस के साथ,
आँख-मिचौनी खेलते रह गए…
प्रश्न यह था की किस-किस को कैसे-कैसे करते sanitize या quarantine?
बहुत याद आती बड़े-बड़े लाल मटके,
जिस में भरे होते मस्त-मस्त कुल्फी और चटक जल जीरा ,
बहूत तड़पाया कोला वाला बर्फ का गोला ,
झुंझला कर कभी एसा लगा की क्यों ना बना ले sanitizer का पन्ना ,
लस्सी, कुल्फी और sanitizer का गोला |
कभी हम लेते थे ठंडे पूल में डुबकी ,
पर अब फल, शाक-सब्जी लें रहें हैं sanitizer के घोल में डुबकी |
मैने विस्मय से एक दिन अपने पापा से पूछा “क्यों ना में आपके स्मार्ट फ़ोन और पैसो को कर दूँ quarantine या फिर कर दूँ sanitize?”
पर गोल-गोल आँख घुमा कर, पर घोर आश्चर्य, पापा फूर्ति के साथ लपक कर अपना फ़ोन एवम बटुआ उठा कर बोले “क्यों ना मैं ही हो जाऊं quarantine इन दोनों दोस्तों के साथ!!”
वह छुक-छुक गाड़ी में दादी-नानी के घर जाना,
स्वादिष्ठ पकवानो का लुत्फ उठाना,
कहानियां सुनना, रूठना मनाना,
सब रह गए धरे के धरे ,
सिर्फ कारण तेरे तेरे तेरे |
हे कोरोना कृप्या अब मत कुछ नया करोना |
काश की ऐसा होता जो टिड्डी दल आई थी वो कोरोना को खातीं और कोरोना उनको खाती !!
सब अच्छा होता अगर बच जाती हमारी यह मनुष्य जाती |
अरे ओ कोरोना कम से कम अब तो बारिश के पानी में बह जाओ ना,
या किसी दलदली मिट्टी में दफन हो जाओ ना |
अब हाथ जोड़े, पाँव पड़ें तुम्हारे कि तुम सदा के लिए अलविदा हो जाओ ना |
अलविदा कहते हुए मनुष्य को यह भी सिखाते जाओ की हमे प्रकृति को साथ ले कर रहना और आगे बढ़ना है ,
वर्ना निश्चित ही मरना है |
कोरोना कोरोना अब बस करो ना,
भूल चूक लेनी देनी को सब माफ़ करोना,
मानव जाती पर अब थोड़ा रहम करोना |
(उत्त्कर्षिणि द्धिवेदी)